हरियाली तीज क्यों मनाई जाती है? क्या है इसका महत्व? | Kyu manai jati hai Hariyali Teej? |Teej vrat |
@TanviBhaktiBhav
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वैज्ञानिक है हरियाली तीज. हिन्दुत्व का हर पर्व है प्रकृति से जुड़ने का तरीका..!
हरियाली तीज हरियाली तीज का उत्सव श्रावण मास में शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाता है। यह उत्सव महिलाओं का उत्सव है। सावन में जब सम्पूर्ण प्रकृति हरी चादर से आच्छादित होती है उस अवसर पर महिलाओं के मन मयूर नृत्य करने लगते हैं। वृक्ष की शाखाओं में झूले पड़ जाते हैं।पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसे कजली तीज के रूप में मनाते हैं। सुहागन स्त्रियों के लिए यह व्रत काफी मायने रखता है। आस्था, उमंग, सौंदर्य और प्रेम का यह उत्सव शिव-पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। चारों तरफ हरियाली होने के कारण इसे हरियाली तीज कहते हैं। इस मौके पर महिलाएं झूला झूलती हैं, लोकगीत गाती हैं और खुशियां मनाती हैं
इस उत्सव में कुमारी कन्याओं से लेकर विवाहित युवा और वृद्ध महिलाएं सम्मिलित होती हैं। नव विवाहित युवतियां प्रथम सावन में मायके आकर इस हरियाली तीज में सम्मिलित होने की परम्परा है। हरियाली तीज के दिन सुहागन स्त्रियां हरे रंग का श्रृंगार करती हैं। इसके पीछे धार्मिक कारण के साथ ही वैज्ञानिक कारण भी शामिल है। मेंहदी सुहाग का प्रतीक चिन्ह माना जाता है। इसलिए महिलाएं सुहाग पर्व में मेंहदी जरूर लगाती है। इसकी शीतल तासीर प्रेम और उमंग को संतुलन प्रदान करने का भी काम करती है। ऐसा माना जाता है कि सावन में काम की भावना बढ़ जाती है। मेंहदी इस भावना को नियंत्रित करता है। हरियाली तीज का नियम है कि क्रोध को मन में नहीं आने दें। मेंहदी का औषधीय गुण इसमें महिलाओं की मदद करता है।इस व्रत में सास और बड़े नई दुल्हन को वस्त्र, हरी चूड़ियां, श्रृंगार सामग्री और मिठाइयां भेंट करती हैं। इनका उद्देश्य होता है दुल्हन का श्रृंगार और सुहाग हमेशा बना रहे और वंश की वृद्धि हो।
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कहा जाता है कि इस दिन माता पार्वती सैकड़ों वर्षों की साधना के पश्चात् भगवान् शिव से मिली थीं। यह भी कहा जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए १०७ बार जन्म लिया फिर भी माता को पति के रूप में शिव प्राप्त न हो सके। १०८ वीं बार माता पार्वती ने जब जन्म लिया तब श्रावण मास की शुक्ल पक्ष तृतीय को भगवन शिव पति रूप में प्राप हो सके।तभी से इस व्रत का प्रारम्भ हुआ। इस अवसर पर जो सुहागन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके शिव -पार्वती की पूजा करती हैं उनका सुहाग लम्बी अवधि तक बना रहता है।[4]साथ ही देवी पार्वती के कहने पर शिव जी ने आशीर्वाद दिया कि जो भी कुंवारी कन्या इस व्रत को रखेगी और शिव पार्वती की पूजा करेगी उनके विवाह में आने वाली बाधाएं दूर होंगी साथ ही योग्य वर की प्राप्ति होगी। सुहागन स्त्रियों को इस व्रत से सौभाग्य की प्राप्ति होगी और लंबे समय तक पति के साथ वैवाहिक जीवन का सुख प्राप्त करेगी। इसलिए कुंवारी और सुहागन दोनों ही इस व्रत का रखती हैं।
तीज हिन्दू नारी के मनावे वाला बहुत महत्व के पर्व ह। ई पर्व अपना मरद के लम्बा उमिर आ स्वास्थ्य के कामना खाती मनावल जाइल जाला। ई त्यौहार भाद्र शुदी द्वीतिया से पञ्चमी तक 4 दिन मनवाल जाला। तीज में भगवान शिव के पूजा अर्चना कइला के साथ नाचगान मनोरञ्जन समेत करे के चलन बा। हिन्दू मेहरारू द्वारा स्वतन्त्र आ आनन्दमय रूप से मनवाल जाये वाला ई त्यौहार अन्य धर्म आ जातजाति के मेहरारू भी हर्षोल्लास के साथ मनावे लागल बडिस।
ई त्यौहार मुख्य रूपले उत्तरप्रदेश,बिहार,नेपाल आदि में मनावल जाला। कहल जाला की आदि -शक्ति भगवान शिव केअर्धाङ्गीनी हिमालय पुत्री पार्वती जी भगवान शिव के स्वास्थ्य तथा शरीर में कवनो वाधा उत्पन्न न हो एह कामना से पहिले भूखल रही उ दिन शास्त्र में हरितालिका तिज के दिन कहल गइल बा तब से आज तक हर हिन्दू नारी ई त्यौहार मनावत अवतारी ।
तीज भूखे वाला दिन से एक दिन पहिले यानि भाद्र शुदी दुतिया के हर कोई अपना बेटी बहिन के घरे बोलावेला या ससुरार से नईहर आवे में कवनो समस्या के स्थिति में नईहर से मर-मिढ़ाई ल, लुगा-झूला, लइकन के खेलवाना आदि भेजवा दिहल जाला एकरा के तीज भेजल या आयिल कहल जाला। जेकरा के देख सेकरे घरे ससुरारी आ ममहर के लोग लउकेला। पूरा गांव में खुसी के माहौल बन जाला। एह त्यौहार में मुख्य रूप से पौरकिया ठेकुआ टिकरी बेलगरामी जईसन मिठाई जेकरा घरे पहुंच ओहिजे मिलेला। रात में देरी तक मेहरारू खालिस 4 बजे भोर तक दही आदि के सरबत पिअल जाला एकरा के सरगही खाए वाला दिन कहल जाला।
तीज के दिन छोड़ के गणेशचतुर्थी आ ऋषिपञ्चमी के भी एक साथ मनावे के चलन बा। आज के दिन मेहरारू लोग भोरे उठ के नहा-धोवा के नया कपडा पहिर के भगवान भोले नाथ के पूजा करेला लोग दिन भर निराजल भूख के साझी खानी टोल गांव के बेटी-पतोह संगे जुट के गीत मंगल आदि गावे ला लोग। भोले नाथ के मंदिर में दिआ जरावे के साथ साथ सुंदर -सुन्दर भजन से पूरा गांव गूँज जाला आज के माहौल आ सदभावना देखि के मन करेला की ई दिन सालो भर रहित। तीज के दिन मेहरारू लोग के मुरझाईल चेहरा देख के नारी के महानता के बोध होला की कैसे अपना शरीर के कष्ट देके ई लोग अपना परिवार के खुसी के कामना करेला लोग। शायद एहि से शास्त्र में नारी के महानता बतावल गइल बा।
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