भगवद गीता का पहला श्लोक, धृतराष्ट्र द्वारा संजय से पूछा गया एक साधारण सा प्रश्न प्रतीत होता है, लेकिन यह जीवन की गहरी सच्चाई को उजागर करता है। "धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे" शब्द केवल युद्धभूमि नहीं, बल्कि हमारे जीवन के संघर्षों का प्रतीक है। यह बताता है कि हर इंसान को धर्म (कर्तव्य) और अधर्म (मोह और स्वार्थ) के बीच चुनाव करना पड़ता है। धृतराष्ट्र का पुत्र मोह और पक्षपात हमें सिखाता है कि निर्णयों में अज्ञान और आसक्ति कैसे बाधा बन सकते हैं। यह श्लोक दर्शाता है कि आत्मनिरीक्षण और सही मार्गदर्शन (जैसे संजय का दृष्टिकोण) ही हमें सच्चाई के करीब ले जा सकता है।
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