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श्री आरती पूजा - संध्या II SHRI AARTI POOJA -EVENING WITH LYRICS AND MUSIC

श्री सदगुरु देवाय नमः*

श्री आरती-पूजा, सेवा, सत्संग, सुमिरण और ध्यान l
श्रद्धा सहित जो नित करे, निश्चय हो कल्याण ll

यह सायं:काल की श्री आरती पूजा गुरुमुखों के लाभार्थ यहाँ उपलब्ध कराई गई है ताकि गुरुमुख जन जहाँ कहीं भी रहे घर में या अन्य शहर में या यात्रा के दौरान , सफर में भी श्री आरती पूजा को सुनकर और गाकर अपनी आत्मिक प्यास बुझा सके एवं रूहानी लाभ प्राप्त कर सके I

श्री आरती

ऊँ जय श्री जगतारण, स्वामी जय श्री जगतारण।

शुभ मग के उपदेशक, यम त्रास निवारण।।

ऊँ जय -------।

परमारथ हित अवतार जगत में, गुरु जी ने है लीन्हा;
मेरे स्वामी जी ने है लीन्हा, हम जैसे भागियन को, गृह दर्शन दीन्हा।।
ऊँ जय -------।

कलि कुटिल जीव निस्तारण को, प्रभु सन्त रूप धर के;
स्वामी सन्त रूप धर के। आतम को दर्शावत, मल धोये हैं मन के।।
ऊँ जय -------।

आप पाप त्रय ताप गये, जो गुरु शरणी आये;
मेरे स्वामी शरणी आये। गुरु जी से लाल अमोलक, तिस जन ने पाये।।
ऊँ जय --------।

सहज-समाधि, अनाहत-ध्वनि, जप अजपा बतलाये;
स्वामी जप अजपा बतलाये। प्राणायाम की लहरें, मेरे मन भाये।।
ऊँ जय --------।

हरि कृपा कर जन्म दियो, जग मात पिता द्वारे;
स्वामी मात पिता द्वारे। उनसे अधिक गुरु जी हैं, भवनिधि से तारें।।
ऊँ जय --------।

तले की वस्तु गगन ठहरावे, गुरु के शब्द शर से;
सतगुरु के शब्द शर से। सो सूरा सो पूरा, बल में वह बरते।।
ऊँ जय ------।

तत्-स्नेह, प्रेम की बाती, योग अगन जिनके;
स्वामी योग अगन जिनके। आरती लायक सो जन, जो हैं शुद्ध मन के।।
ऊँ जय --------।

श्री परमहंस सतगुरु जी की आरती, अष्टपदी रच के;
स्वामी अष्टपदी रच के। साहिबचन्द ने गाई, पद रज सज कर के।।
ऊँ जय --------।


स्तोत्र

जय सत्-चित्त-आनन्द मूरति, स्वामी जी के चरण वन्दनम्।
जो दे उपदेश क्लेश नाशै, कलि के कलुष विभंजनम्।।

जो ज्ञान-निधि विज्ञान-दायक, घायकं सब दुष्कृतम्।
युतयोग भोगहि रोग जानै, सुख-दुखं सम अरि-मितम्।।

परमार्थ पथ भेद वेद के, खेद बिन जो दायकम्।
शरणागत के भरम हत के, सत् ही के कर लायकम्।।

मलयदल- अमल अचल पदाम्बुज, सद्गुरु के जो ध्यावतम्।
सुख, सुयश सुगति सुबुद्धि सुशान्ति, बिन प्रयास सो पावतम्।।

है जग जन्म सफल तिस का, जो गुरु-पद रज मन लावहिं।
ज्यों पारस परसि कुधातु सुधरे, त्यों फिर जन्म न आवहिं।।

दया के सिन्धु ज्यों शीतल इन्दु ज्यों, ॐ के बिन्दु ज्यों भासतम्।
तेजमय भानु ज्यों, विद्या की खान ज्यों, अहनिश ध्यान में वासतम्।।

परम धर्म श्री सद्गुरु की सेवा, विदित नरक निवारणम्।
जासु शब्द भव बन्धन काटत, समझ पड़त यही कारणम्।।

सन्त महात्मा और बुद्ध जन, वेद पुराण यही गावहिं।
प्रभु ते अधिक गुरु जो सेवत, सो निश्चय प्रभु पावहिं।।

शुक-सनकादिक ध्रुव-नारदादिक, गुरु-उपदेश ते अमरणम्।
ऋषि मिनि जन प्रकृत जग में, ले दीक्षा प्रभु सुमिरणम्।।

गुरु यश दिक्-पद अहनिशि गावत, दसहुँ दिशि भ्रम दु:ख जारतम्।
गुरु पद जलज अलि मन जाको, "साहिबचन्द' उच्चारतम्।।

स्तुति

पूरण सतगुरु ब्रह्म स्वरुप |
महिमा जिनकी अगम अनूप ||

पारब्रह्म गुरु सुख की खान |
पर उपकारी पुरुष महान ||

गुरु की महिमा अगम अपार |
वेद न पावें पारावार ||

गुरु समरथ गुरु कर्णधार |
जन जन का करते निस्तार ||

वचन गुरु के अमृत वाणी |
सुनत आनन्द रस पावे प्राणी ||

गुरु का वचन मेटे अज्ञान |
बख्शे नाम रतन धन खान ||

सर शब्द गुरु का उपदेश |
मन अन्तर के मिटे क्लेश ||

जीव ब्रह्म का भेद बतावें |
सूरत शब्द का मेल करावें ||

गुरु मूरत का करिये ध्यान |
गुरु ऊपर जाईये कुर्बान ||

सब तीरथ गुरु चरणन माहीं |
चरण परस कलि मल धुल जाहीं ||

गुरु के चरण राखे उर धार |
हिरदै माहिं होय उजियार ||

भाग बड़े गुरु दर्शन पाये |
जन्म मरण के त्रास मिटाये ||

जो गुरु सेवा में चित लावे |
कलह क्लेश सभी मिट जावे ||

गुरु की सेवा सब सुख खान |
सेवक पावे दरगह मान ||

गुरु आज्ञा में रहे जो कोई |
तिस सेवक को दूख न होई ||

जप तप सयंम करे अनेक |
गुरु बिन कबहुँ न होय विवेक ||

गुरु गोबिन्द एको कर जान |
गुरु सम दूजा और न मान ||

जिस पर होयॅं गुरु दयाल |
भक्ति धन से करें निहाल ||

परमहंस सतगुरु अवतार |
चरण कमल पे सद बलिहार ||

'दासनदास' की एह अरदास |
राखो चरण कमल के पास ||


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