श्रेय:
संगीत एवम रिकॉर्डिंग - सूर्य राजकमल
लेखक - रमन द्विवेदी
भक्तों नमस्कार! प्रणाम! और सादर अभिनन्दन! भक्तों आज हम आपको अपने लोकप्रिय कार्यक्रम दर्शन के माध्यम से जिस धार्मिक स्थान की यात्रा करवाने जा रहे हैं वो अयोध्या के दशरथ भवन के नाम से जाना जाता है।
दशरथ भवन के बारे में:
भक्तों दशरथ भवन, अयोध्या के रामकोट बाज़ार क्षेत्र में, अमावा भवन के समीप ही स्थित है।यह पूर्णतः एक धार्मिक स्थान है। जो अयोध्या के लोकप्रिय स्थानों में से एक है।
उत्सव व् त्यौहार:
भक्तों दशरथ भवन में, श्रीरामनवमी जन्मोत्सव, श्रीराम विवाह, कार्तिक मेला और श्रावण मेला का उत्सव बड़े ही हर्षोल्लास और धूमधाम के साथ मनाये जाते हैं। ये उत्सव भक्तों कोण चुम्बक भांति अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इसीलिए इन अवसरों पर यहां हजारों श्रद्धालु खिंचे चले आते हैं और भगवान् का दर्शन पूजनकर आनंद की अनुभूति करते हैं।
सरयू नदी:
भक्तों श्रीराम नगरी अयोध्या और यहाँ बहने वाली राम प्रिया सरयू एक दूसरी की समपूरक हैं। अर्थात अयोध्या की चर्चा सरयू के बिना पूर्ण नहीं हो सकती। क्योंकि धराधाम में सरयू का अवतरण अयोध्या के लिए ही हुआ है इसलिए सरयू अयोध्या के अतिरिक्त किसी अन्य नगर का स्पर्श नहीं करती। भक्तों पुराणों के अनुसार सरयू की महिमा भागीरथी गंगा से अधिक है क्योंकि गंगा की उत्पत्ति भगवान् विष्णु के चरणों से है तथा सरयू की उत्पत्ति भगवान् विष्णु के नेत्रों से। एक पौराणिक कथा के अनुसार - सतयुग में शंखासुर नाम का एक पराक्रमी दैत्य हुआ। जो वेदों को चुराकर समुद्र में छुप गया। तब देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार धारण कर शंखासुर का वध किया और वेदों को मुक्त कराया। और चतुर्भुज स्वरूप धारण कर वेद देवताओं को सौंपा तो देवतागण भगवान की स्तुति करने लगे। उस समय भगवान् विष्णु की नेत्रों से हर्ष के कारण प्रेमाश्रु झरने लगे। उन प्रेमाश्रुओं को ब्रह्माजी ने मानसरोवर में संग्रहित कर लिया। कालांतर वैवस्वत मनु ने अयोध्या नगर की स्थापना की और अपने गुरु महर्षि वशिष्ठ से अश्वमेध यज्ञ करवाने की इच्छा प्रकट की। तब महर्षि वशिष्ठ ने वैवस्वत मनु को मानसरोवर में सग्राहित भगवान् के प्रेमाश्रुओं को नदी के रूप में आवाहन करने की आज्ञा दी। तब वैवस्वत मनु ने भगवान् के प्रेमाश्रुओं को नदी के रूप में आवाहन करते हुए अपनी धनुष की प्रत्यंचा में बाण अर्थात शर चढ़ाकर मानसरोवर में प्रहार कर दिया। उस बाण यानि शर के प्रहार से जिस नदी का प्रादुर्भाव हुआ उसे शरयू की संज्ञा दी गयी।
दशरथ भवन में आरती:
भक्तों दशरथ भवन में आरती से पहले भगवान् के श्रृंगार हेतु गर्भगृह का पट बंद कर दिया जाता है। श्रृंगार के बाद शंख्ध्वनि के साथ पट खुलता है। और भगवान् की मंगलमय आरती प्रारंभ होती है। इस दौरान ढोल नगाड़े शंख और घड़ियाल के अनहद नाद में भाव विभोर होकर भक्त गण नाचने लगते हैं। आरती के दर्शन के लिए उपस्थित भक्तों होड़ में सी मच जाती है। भक्तों यदि आप को अयोध्या जाने का सौभाग्य प्राप्त होता है तो आप दशरथ भवन की आरती का दर्शन अवश्य करें। भक्तों यहाँ की आरती आपका मन मुग्ध कर देगी। आरती के पश्चात मन्त्र पुष्पांजलि दी जाती है। तब शरणागति मंत्रोच्चार के साथ सभी भक्तगण भगवान् के सामने साष्टांग दंडवत प्रणाम करते हैं।
यात्री निवास:
भक्तों अयोध्या स्थित दशरथ भवन परिसर में यात्रियों और पर्यटकों के ठहरने के उद्देश्य से एक यात्री निवास बनाया गया है। इस यात्री निवास यात्रियों और पर्यटकों के ठहरने के लिए उत्तम और अत्याधुनिक व्यवस्था की गयी है।
भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद। दर्शन ! 🙏
इस कार्यक्रम के प्रत्येक एपिसोड में हम भक्तों को भारत के प्रसिद्ध एवं प्राचीन मंदिर, धाम या देवी-देवता के दर्शन तो करायेंगे ही, साथ ही उस मंदिर की महिमा उसके इतिहास और उसकी मान्यताओं से भी सन्मुख करायेंगे। तो देखना ना भूलें ज्ञान और भक्ति का अनोखा दिव्य दर्शन। 🙏
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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